खेती में नित नये नवाचार कर रहे हैं किसान


भोपाल :  
मध्यप्रदेश में किसान अब जागरूक हो गये हैं। खेती में नित-नये नवाचार कर रहे हैं। पारम्परिक खेती छोड़ी नहीं है लेकिन केवल उसी के भरोसे भी नहीं हैं। अब किसान उद्यानिकी खेती के साथ-साथ संरक्षित खेती, मिश्रित खेती, जैविक खेती जैसे प्रयोग बेहिचक कर रहे हैं। राज्य सरकार की कृषि विकास एवं कृषक कल्याण योजनाओं का भरपूर लाभ प्राप्त कर रहे हैं। इन योजनाओं में आकर्षक अनुदान का प्रावधान किसानों के लिये आर्थिक सम्बल बन गया है।
दमोह जिले की पथरिया तहसील के ग्राम नंदरई निवासी धनीराम पटेल जैविक खेती को अपनाकर उद्यानिकी फसलों के साथ रबी की फसलें भी ले रहे हैं। आज 50-60 किसान इनकी सलाह पर सिंचाई के लिये ड्रिप सिस्टम लगाकर जैविक खेती कर रहे हैं। धनीराम को उद्यानिकी में उत्कृष्ठ कार्य के लिये राज्य शासन द्वारा 25 हजार रुपये का जिला स्तरीय पुरस्कार भी दिया गया है। 
धनीराम को उद्यानिकी विभाग से नाडेप प्राप्त हुआ है और कृषि विभाग ने पाईप दिये हैं। नाडेप में केंचुआ खाद तैयार कर अपने खेत में डालते हैं जिससे उन्नत खेती होती है। मल्चिंग बिछाकर भादों मास में टमाटर की खेती शुरू की थी, 90-95 दिन में टमाटर तैयार हो गये, जिन्हें बेचने पर करीब 2 लाख रूपये की आय हुई। अभी इनके खेत में गेंहूँ की फसल खड़ी है। असाढ़ में खेत में भटा लगाये थे, उसके बाद गेंहूँ की फसल ली। टमाटर, लहसुन, मूली आदि में ड्रिप सिस्टम से सिंचाई करते हैं, इससे पानी की बचत होती है। खेत में कठहल के पेड़ भी लगे हैं जिनमें अभी फल आना शुरू हुए है। अनार के पेड़ भी लगाये हैं। आज के वातावरण में जैविक खाद से पैदा हुई फसल की बहुत मांग है, इसके अच्छे पैसे भी मिलते हैं।
दमोह जिले के ही ग्राम बांसकला के परसादी पटेल के पास मात्र दो एकड़ जमीन है। इसके बावजूद उनके उत्साह, लगन तथा उन्नत तकनीकों की जानकारी ने उन्हें जिले के प्रगतिशील किसानों की श्रेणी में खड़ा कर दिया है। परसादी लाल पहले भाजी वाले के नाम से जाने जाते थे। कृषि विभाग, उद्यानिकी विभाग और स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग तथा मार्गदर्शन से उनके जीवन में अप्रत्याशित बदलाव आया है। उन्होंने सबसे पहले जैविक खाद बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया। अब उनके खेत में फसलें जैविक खाद से लहलहा रही हैं। परसादी लाल उन्नत तकनीक से प्याज, टमाटर और लहसुन की खेती भी कर रहे हैं।
 अनूपपुर जिले में जीरो टिलेज से गेहूं की बुवाई करने से उत्पादन दोगुना हो गया है। इससे कृषि लागत भी कम हो गयी है। कोतमा निवासी गोविन्द प्रजापति के पास 2.203 हेक्टर भूमि है । उस पर मैंने परम्परागत तरीके से धान की खेती एवं उड़द तथा अरहर की मिश्रित खेती करते थे। कभी-कभी रबी में चना एवं मसूर बहुत कम रकबे में कर पाते थे। इससे उत्पादन बहुत ही कम मिलता था।
कृषक गोविंद ने जब परम्परागत खेती से हटकर रबी में 2 एकड़ रकबे में जीरो टिलेज से गेहूँ जे. डब्लू 3211 की लाईन कतारबद्ध बोनी की, तो उपज में काफी अन्तर दिखा। अब 2 गुना पैदावार मिलने की पक्की संभावना है। इन्होंने कृषि विभाग के अनुदान से पॉवर टिलर तथा रा.खा.सु.मि. योजनान्तर्गत डीजल पम्प, स्प्रेयर पम्प, पाईप लाईन एवं स्प्रिंकलर अनुदान पर प्राप्त किया। गोबर का सदुपयोग कर अच्छा खाद प्राप्त करने के लिए नाडेप टॉका का निर्माण करवाया है। इन्होंने पहली बार कुसुम की खेती का अनुभव प्राप्त किया है, जो सुखद रहा।
मण्डला जिले में किसान उद्यानिकी योजनाओं को अपनाकर अपनी निजी भूमि में सब्जी एवं फूल उत्पादन कर अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे हैं। ग्राम गाजीपुर के कृषक सीताराम चावला ने खेत में 0.500 हेक्टेयर रकबा क्षेत्र में वर्ष 2013-14 में उद्यानिकी विभाग से अनुदान पर प्राप्त आम का पौधरोपण किया। विभाग ने इन्हें मानक स्तर के 50 कलमी आम के पौधे दिये और प्रशिक्षित किया। अभी इनकी जमीन पर आम का शानदार बगीचा लहलहा रहा है। इन्होंने स्वयं के व्यय से उच्च प्रजाति के अमरूद, चीकू, अनार आदि के पौधों का रोपण भी किया है। इसी क्षेत्र में अंतवर्तीय फसलें भी ले रहे हैं। अगले वर्ष इनके खेत में प्रधानमंत्री सिंचाई योजनान्तर्गत टपक सिंचाई संयंत्र स्थापित किया जाएगा।
छतरपुर जिले के बिजावर ब्लाक के गांव हटवाहा के कृषक जीतेन्द्र साहू को उद्यानिकी विभाग द्वारा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हार्टीकल्चर टेक्नोलॉजी से मल्चिंग और ड्रिप सिंचाई का प्रशिक्षण दिलवाया गया है। प्रशिक्षण से जितेन्द्र ने एक हेक्टेयर में इस तकनीक से टमाटर, बैंगन और मिर्च की खेती की, तो परम्परागत तरीके की अपेक्षा डेढ़ गुना अधिक उत्पादन हुआ। वर्ष 2017-18 में संरक्षित खेती में इनकी सफलता पर इन्हें जिले का सर्वोत्कृष्ठ कृषक पुरस्कार भी मिला है। पुरस्कार में सम्मान स्वरूप प्रशस्ति-पत्र ओर 25 हजार रुपए की नगद राशि मिली हैं।
झाबुआ जिले के पेटलावद ब्लॉक के किसान शंभुलाल ने एक दिन टी.वी. पर सुबह-सुबह कृषि दर्शन चैनल पर खेती किसानी कार्यक्रम देखा। कार्यक्रम में प्लास्टिक मल्चिंग के अंतर्गत प्लास्टिक बिछाकर टमाटर की संरक्षित मल्चिंग खेती करने की जानकारी मिली, तो उद्यानिकी विभाग से सम्पर्क किया। उद्यानिकी विभाग के सहयोग एवं मार्गदर्शन से एक हेक्टेयर में प्लास्टिक मल्चिंग बिछाई और उसमें टमाटर लगाया। इससे हुई टमाटर की भरपूर पैदावार से इन्हें 2 लाख रुपये की अतिरिक्त आमदनी हुई। शंभुलाल ने अब उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग कर खेती को लाभ का व्यवसाय बना लिया है। परम्परागत खेती से वे जितनी जमीन में मात्र 20-25 हजार रुपये वार्षिक कमाई करते थे, उसी से अब लगभग 3 - 4 लाख रूपये वार्षिक आय अर्जित कर रहे हैं। 
सीहोर जिले की नसरूल्लागंज तहसील के ग्राम राला के किसान जीतेन्द्र ने विगत वर्ष कृषि विभाग की योजना एन.एफ.एस.एम. गेहूं के अन्तर्गत रोट्रावेटर खरीदा, जिस पर 30 हजार रुपये का अनुदान भी प्राप्त हुआ। अब अपने खेत में रोट्रावेटर का उपयोग कर रहे हैं। इससे खेत में कार्बनिक पदार्थ की वृद्धि हो रही है। अब किराये पर अन्य कृषकों के खेत में रोट्रावेटर चलवाकर 40 हजार रुपये अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त कर रहे हैं।
सीहोर जिले के ही बुधनी विकासखंड में लगभग 4 एकड़ सिंचित भूमि पर कृषि करने वाले ग्राम जोनतला निवासी कृषक सागर सिंह के पास सिंचाई के लिए डीजल पंप नहीं था। इस कारण एक फसल ही ले पाते थे। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण बाजार से पंप क्रय नहीं कर पा रहे थे। कृषि विभाग ने राष्ट्रीय विकास योजनान्तर्गत इन्हे 5 हार्सपावर का डीजल पंप अनुदान पर दिलवाया। इस पर उन्हे 10 हजार रूपये अनुदान भी मिला। अब सागर सिंह वर्ष में दो फसल लेते हैं। खरीफ में धान और पूसा बासमती की फसल ली है जिससे भरपूर लाभ मिला है। रबी में गेहूँ की फसल लगाई और इंजन से सिंचाई की। विपरीत मौसम में भी इनके खेत में 10 क्विंटल प्रति एकड़ गेहूँ की उपज हुई है।

Share this:

Post a Comment

 
Copyright © Metro News Today. Designed by OddThemes