नई दिल्ली: पिछले मानसून में बारिश कम होने की वजह से अगले कुछ महीनों में देश के कई हिस्सों में जल संकट गहरा सकता है. अभी गर्मी की शुरुआत हुई है. आने वाले महीनों में भयंकर गर्मी पड़ेगी. पिछले साल अक्टूबर से मार्च २०१८ के मौसम विभाग के आंकड़ों को देखें तो देश के कुछ हिस्सों में अगले कुछ महीनों में पड़ने वाली भीषण गर्मी से उत्पन्न सूखे के हालात की भयावहता नजर आती है. मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल अक्टूबर २०१७ से बारिश की स्थिति संतोषजनक नहीं रही. हालात ये हैं कि ४०४ जिलों में सूखे की स्थितियां बन गई हैं.
मौसम विभाग के मुताबिक, ४०४ जिलों में से १४० जिलों में अक्टूबर २०१७ से मार्च २०१८ की अवधि में अत्यंत सूखा करार दिया गया. १०९ जिलों में मामूली सूखा, जबकि १५६ जिलों में हल्के सूखे की स्थितियां बताई गईं हैं. आईएमडी डेटा से देशभर में ५८८ जिलों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि १५३ जिले बेहद सूखी श्रेणी में हैं. इन जिलों में जनवरी से मार्च २०१८ तक की अवधि में बारिश हुई ही नहीं है. चिंताजनक बात तो यह है कि ढ्ढरूष्ठ की मानकीकृत वर्षा सूचकांक (एसपीआई) में गत वर्ष (जून २०१७ से) मानसून के महीनों में भी ३६८ जिलों में हल्के से बहुत सूखे की स्थितियां दर्शायी गई हैं.
स्टैंडर्ड प्रीसिपीटेशन इंडेक्स से मौसम विभाग सूखे की स्थिति को आंकता है. इसे बारिश और सूखा मांपने के लिए +२ और -२ के दो पैमानों का इस्तेमाल होता है. यहां २ और उससे ज्यादा के स्केल पर चरम नमी को दर्शाता है. वहीं, -२ का स्केल बेहद सूखे की स्थिति को दर्शाता है. अन्य स्थितियों में इनके बीच की सीमाओं को दर्शाती है, इसे गंभीर रूप से गीले से लेकर गंभीर सूखे तक शामिल है. एसपीआई को दुनिया भर में बारिश मांपने के लिए एक सटीक उपाय माना गया है. आईएमडी के जलवायु डेटा प्रबंधन और सेवा के प्रमुख पुलक गुहाथुकुता के मुताबिक, यह सामान्य बारिश की तुलना में किसी विशेष स्थान पर सूखापन या नमी की सीमा को दर्शाता है.
मौसम विभाग के मुताबिक, ४०४ जिलों में से १४० जिलों में अक्टूबर २०१७ से मार्च २०१८ की अवधि में अत्यंत सूखा करार दिया गया. १०९ जिलों में मामूली सूखा, जबकि १५६ जिलों में हल्के सूखे की स्थितियां बताई गईं हैं. आईएमडी डेटा से देशभर में ५८८ जिलों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि १५३ जिले बेहद सूखी श्रेणी में हैं. इन जिलों में जनवरी से मार्च २०१८ तक की अवधि में बारिश हुई ही नहीं है. चिंताजनक बात तो यह है कि ढ्ढरूष्ठ की मानकीकृत वर्षा सूचकांक (एसपीआई) में गत वर्ष (जून २०१७ से) मानसून के महीनों में भी ३६८ जिलों में हल्के से बहुत सूखे की स्थितियां दर्शायी गई हैं.
स्टैंडर्ड प्रीसिपीटेशन इंडेक्स से मौसम विभाग सूखे की स्थिति को आंकता है. इसे बारिश और सूखा मांपने के लिए +२ और -२ के दो पैमानों का इस्तेमाल होता है. यहां २ और उससे ज्यादा के स्केल पर चरम नमी को दर्शाता है. वहीं, -२ का स्केल बेहद सूखे की स्थिति को दर्शाता है. अन्य स्थितियों में इनके बीच की सीमाओं को दर्शाती है, इसे गंभीर रूप से गीले से लेकर गंभीर सूखे तक शामिल है. एसपीआई को दुनिया भर में बारिश मांपने के लिए एक सटीक उपाय माना गया है. आईएमडी के जलवायु डेटा प्रबंधन और सेवा के प्रमुख पुलक गुहाथुकुता के मुताबिक, यह सामान्य बारिश की तुलना में किसी विशेष स्थान पर सूखापन या नमी की सीमा को दर्शाता है.
हर साल गर्मी के दौरान देश के कई हिस्सों में पानी की कमी का सामना करना पड़ता है. सर्दियों में होने वाली बारिश में कमी इस साल और खराब स्थिति का सबसे बड़ा कारण है. आईएमडी डेटा के मुताबिक, इस साल जनवरी और फरवरी में पूरे भारत में 63% कम बारिश हुई है. मार्च से 11 अप्रैल तक 31% कम बारिश हुई है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, जनवरी से मार्च के बीच लिए गए एसपीआई आंकड़ों में यह दर्शाया गया है कि 472 जिलों में सूखे से ग्रस्त हैं. वहीं, इनमें से 153 जिलों में भीषण सूखे की स्थिति है. ज्यादातर सूखे की स्थिति वाले जिलों में अधिकांश उत्तर, मध्य और पश्चिम भारत में हैं, साथ ही पूर्व में बिहार और झारखंड जैसे कुछ स्थानों में भी सूखे की स्थिति है. उत्तर-पश्चिम भारत में सबसे कम बारिश हुई है. इनमें तीन पहाड़ी राज्यों के अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान शामिल हैं. इन राज्यों में पिछले मॉनसून के सीजन में 10 फीसदी कम बारिश हुई. अक्टूबर से दिसंबर के बीच 54 फीसदी कम बारिश हुई. वहीं, जनवरी से फरवरी 2018 के बीच 67 फीसदी कम बारिश हुई. पुलक गुहाथुकुता ने साफ किया कि एसपीआई डाटा देश के कई हिस्सों में पानी के संकट की संभावना का संकेत देता है, यह सूखे का पूर्वानुमान बिल्कुल नहीं बताता. अधिकारी ने कहा, "यह जिला प्रशासनों का काम है, जो अपने क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता की स्थिति पर गौर करें."
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