हरदा। हरदा जिला मुख्यालय से करीब 7 किमी दूर पिडगांव में एक ऐसा हिंदू मराठा परिवार है, जो आज भी राजा के 200 साल पुरान आदेश का पालन कर रहा है। कभी मालगुजार कहलाने वाले इस परिवार की माली हालत वर्तमान में ठीक नहीं है। फिर भी अपने दादा-परदादा के द्वारा राजा को दिए वचन का पालन पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं।
पिडगांव में रहने वाले भिवाजीलाल बावले के मुताबिक उनके पूर्वजों को 1817 में ग्वालियर के राजा ने मोहर्रम पर ताजिए का निर्माण करने का आदेश दिया था जिसका पालन उनका परिवार आज तक कर रहा है। हालांकि 1804 से 1840 तक ग्वालियर के किले में अंग्रेज और सिंधिया परिवार का नियंत्रण बदलते रहा इसलिए वर्तमान पीढ़ी को भी यह नही बता पा रही है कि यह किस राजा का आदेश था।
भिवाजीलाल के मुताबिक राजा के आदेश के बाद उनके पूर्वजों ने पिडगांव में आकर मालगुजारी की और ताजिए बनाना शुरू किया। फिर परदादा के गुजरने के बाद यह जबावदारी दादा आनंदराव बावले ने निभाई।
भिवाजीलाल ने बताया कि दादा के गुजरने के बाद मेरे पिता शंकरराव के बड़े भाई लक्ष्मणराव बावले ने ताजिए बनाना शुरू किया। समय बीतता गया और धीरे - धीरे मालगुजारी खत्म होती गई। लेकिन मराठा परिवार में ताजिए बनाने की यह प्रथा नहीं रुकी। 40 साल पहले लक्ष्मणराव बावले के गुजरने के बाद इसे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भिवाजीलाल निभाते आ रहे हैं। वैसे तो ताजिए बैठाने की परंपरा वर्षों पुरानी है, लेकिन पिडगांव का ताजिया हरदा जिले का सबसे पुराना माना जाता है।
भिवाजीलाल ने बताया कि करीब 30 - 35 साल पहले तक ग्वालियर के सिंधिया परिवार से ताजिए बनाने के लिए राशि भी आती थी, लेकिन अब कोई राशि नहीं आती है। उन्होंने बताया कि ताजिए बनाने के लिए करीब 20 हजार से अधिक का खर्चा आता है। जिसे वह स्वयं वहन करते हैं।
श्री बावले ने बताया कि कुछ समय पहले मकान में आग लग गई थी, इस दौरान घर में रखे मालगुजारी के दस्तावेज सहित अन्य आदेश जलकर खाक हो गए। श्री बावले बताते हैं कि हमारा सात भाइयों का परिवार है, लेकिन शासन के सिलिंग एक्ट के बाद मालगुजारी खत्म हो गई।
इसके बाद छोटे से गांव मंे रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया। 6 भाई काम धंधे की तलाश में गुजरात चले गए, लेकिन मोहर्रम पर ताजिया बनाने के लिए सभी गांव आते हैं और ताजिए बनाने में सहयोग करते हैं।
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